सुनील कुमार महला
आज हमारी संपूर्ण जीवनशैली पर कहीं न कहीं डिजिटल चीजों, वर्चुअल दुनिया का प्रभाव है। हर कोई एंड्रॉयड मोबाइल, स्मार्टफोन, इंटरनेट, लैपटॉप, कंप्यूटर पर व्यस्त नजर आता है। कहना गलत नहीं होगा कि आज मनुष्य द्वारा निर्मित आधुनिक तकनीक ने स्वयं मनुष्य को ही अपना गुलाम बना लिया है। दुर्भाग्य तो यह है कि आधुनिक मनुष्य स्वयं को पूर्व की तुलना में अधिक स्वतंत्र मानने लगा है जबकि हकीकत यह है कि वह पहले से भी कहीं अधिक पराधीन होता जा रहा है। आज हम सभी वर्चुअल वर्ल्ड के गुलाम हो गए हैं। हम न तो स्वयं को और न ही हमारे बच्चों को डिजिटल प्रभाव से बचा पा रहे हैं। आज के युग में डिजिटल प्रभाव इतना बढ़ गया है कि हम भावनात्मक रूप से कमजोर से नजर आ रहे हैं और न तो हमारे पास और न ही हमारे बच्चों के पास हमारे लिए समय ही बचा है। डिजिटल दुनिया में हम रम-बस से चुके हैं और हमारा स्क्रीन टाइम लगातार बढ़ रहा है। हम डिजिटल चीजों को सीमित करने के बारे में बिलकुल भी नहीं सोचते और यह हमारा समय, हमारे स्वास्थ्य को धीरे धीरे किसी घुन की तरह खाता चला जा रहा है।
डिजिटल प्रभाव के साथ हमारी रचनात्मकता जैसे खत्म प्रायः सी हो चली है। परोपकार, सेवा का भाव तो जैसे हमारे में इस डिजीटाइजेशन के साथ जैसे रहा ही नहीं है। यह ठीक है कि समय के साथ चलना आज की जरूरत है लेकिन टेक्नोलॉजी में इतना रम-बस जाना भी ठीक नहीं है। तकनीक बढ़ रही है तो साइबर अपराध भी बढ़ रहे हैं, हमारे मन- मस्तिष्क पर डिजीटाइजेशन का प्रभाव है और हम इस डिजीटाइजेशन के जैसे गुलाम से बनते चले जा रहे हैं। आज कोई भी व्यक्ति डिजीटल प्रभावों से अछूता नहीं है। यदि हम किसी को यह कहें कि उसे दो चार घंटे मोबाइल, कंप्यूटर, एंड्रॉयड, इंटरनेट से दूर रहना है तो वह शायद इन सबसे दूर विरले ही रह पाएगा। पहले के जमाने में आदमी इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप में इतना व्यस्त नहीं रहा, और उसके पास स्वयं के लिए, अपने बच्चों के लिए, अपने रिश्तेदारों के लिए, दोस्तों के लिए काफी समय था। आज एक कमरे में यदि आठ-दस लोग बैठे हैं तो वे आपस में बतियाते नजर नहीं आएंगे, अपितु अपने मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट पर व्यस्त नजर आएंगे। हम मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट में आज खुशियां ढूढ़ते हैं, वर्चुअल दुनिया में खुशियां ढूढ़ते हैं। हमारे आसपास जो लोग हैं, उनमें हमें खुशियां नजर नहीं आती।
आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है। वास्तव में यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में सबकुछ इम्पैक्ट करने वाली है। सब चीजों पर इसका प्रभाव होगा। कहना गलत नहीं होगा कि आज के समय में वर्चुअल रियलिटी उपकरण (वीआर) एक ऐसी तकनीक है जो पूरी तरह से हमारे अनुभवों और समझ को बदल रही है। इसका उपयोग मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, और यहां तक कि सैन्य अभ्यास में हो रहा है। उल्लेखनीय है कि आज 21वीं सदी में तकनीकी प्रगति के साथ, वर्चुअल रियलिटी एक पूरी तरह से बदलती हुई तकनीक बन गई। अब, गेमिंग, शिक्षा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में इसका व्यापक उपयोग हो रहा है। आज का समय ऐसा समय है जब हमारे बच्चे न तो किसी लाइब्रेरी में जाकर फीजिकली कोई पुस्तकें पढ़ते हैं और न ही वे खेल के मैदानों में ही जाते हैं। सबकुछ एंड्रॉयड स्मार्टफोन ने जैसे छीन सा लिया है। मैदान में जाकर खेलने से बच्चों में जो आत्मविश्वास पैदा होता है, एकाग्रता बढ़ती है, स्वास्थ्य ठीक बना रहता है, क्या वह सब वर्चुअल वर्ल्ड में संभव हो सकता है, कदापि नहीं।
आज के बच्चों में न तो प्रकृति के प्रति वह प्रेम रहा है और न ही टीम वर्क की भावना ही रही है। खुले में, मैदानों में जाकर खेलने से बच्चों को पेड़ पौधों, फूलों और प्राकृतिक सुंदरता को प्रत्यक्ष देखने, उसे महसूस करने के जो अवसर मिलते हैं, वह आभासी दुनिया में नहीं मिल सकते हैं। कहना गलत नहीं होगा कि वर्चुअल रियल्टी के माहौल में हम वास्तविक दुनिया की तरह अपने दम पर कभी भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं। इसका सबसे बड़ा नुक्सान यह है कि इससे छात्र आभासी दुनिया के आदी हो सकते हैं, जैसे कि वे आजकल विडियों गेमिंग के जाल में फसते जा रहे हैं और अपना धन, समय सबकुछ बर्बाद कर रहे हैं। आभासी दुनिया से हमारे
सामाजिक संबंधों पर बहुत बुरा असर पड़ सकता है। सच तो यह है कि आभासी दुनिया की एक बड़ी कमी यह है कि यह लोगों को वास्तविक दुनिया से दूर करने लगती है क्योंकि मानव एक सामाजिक प्राणी है और वह अपना बेहतर विकास समाज में ही कर पाता है। आभासी दुनिया वास्तव में हमें समाज से, हमारे परिवार से दूर ले जाती है। आज आभासी दुनिया में हमारे रिश्ते धीरे धीरे गुम होते चले जा रहे हैं और हम हमारे परिवार से दूर होते चले जा रहे हैं, हमें इस ओर ध्यान देना होगा।
आज स्थिति यह है कि हमारे अपने दोस्तों, अपने रिश्तेदारों के साथ बिताए जाने वाले समय में हर साल तेजी से कमी आ रही है। इस रुझान के अनुसार भविष्य में भी इस मोर्चे पर सुधार के कोई आसार नहीं दिखते क्योंकि आज इंटरनेट, सोशल नेटवर्किंग साइट्स में हम घुसे पड़ें हैं। सच तो यह है कि आज हम तो अधिक से अधिक फालोअर्स और लाइक्स की होड़ में लगे हुए हैं। हम बहुत अधिक आत्मकेंद्रित हो गए हैं। वास्तव में यह आज के समय की मांग है कि हम इस आभासी दुनिया से बाहर निकलकर रिश्तों को समय दें क्योंकि बहुत खामोश रिश्ते ज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहते। कहना चाहूंगा कि आज इंटरनेट मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर किसी के कितने भी फालोअर्स व सब्सक्राइबर हों, वे कठिन समय पर मुश्किल से ही काम आते हैं। वास्तव में यह देखा गया है कि ज्यादातर लोग इंटरनेट मीडिया पर संवेदना के दो शब्द लिखकर ही कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं, जीवन वास्तव में ऐसे नहीं चला करता है। यह ठीक है कि आज सूचना क्रांति व तकनीकी विकास ने हम सभी के समक्ष एक बड़ी आभासी दुनिया खड़ी कर दी है लेकिन हमें इससे बाहर तो स्वयं ही निकलना होगा। आज हमारा समाज एक कृत्रिम समाज है, कृत्रिम मनुष्य है, कृत्रिम रिश्ते हैं, कृत्रिम भावनाएं हैं, कृत्रिम बुद्धि है, कृत्रिम सुंदरता है और यहां तक कि कृत्रिम जीवन, कृत्रिम सांसें और तो और हंसी तक भी कृत्रिमता की भेंट चढ़ गई है। हम कृत्रिमता में हंसते हैं, वर्चुअल दुनिया ने हमारी वास्तविक हंसी, खुशी को जैसे छीन सा लिया है। आज न दादी-नानी की कहानियां हैं और न ही इन कहानियों में चांद में बूढ़ी अम्मा चरखा कातती ही नजर आती है। आज हम इस आभासी दुनिया में न तो आसमान में तारे और असंख्य गैलेक्सियां देखते हैं और न ही प्रकृति के नजारों को।
अंत में यही कहूंगा कि आज आभासी संबंधों को वास्तविक विश्व व वास्तविक रिश्तों से विस्थापित करने की जरुरत अत्यंत महत्ती है। आज आभासी दुनिया के विभिन्न गेम्स एवं इंटरनेट की बढ़ती लत हमारे बच्चों में, युवा पीढ़ी में अनेक विसंगतियों, मानसिक असंतुलन, विकारों एवं अस्वास्थ्य के पनपने का कारण बनी है, यह आदत हमारे बच्चों को एकाकीपन की ओर धकेल रही है और इसका परिणाम यह है कि हमारे बच्चे, हमारी युवा पीढ़ी धीरे-धीरे अपनी पढ़ाई और सामाजिक हकीकत से दूर होकर आभासी दुनिया के तिलिस्मी संसार में रमते जा रहे हैं। यदि हमने समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया तो इसके परिणाम अत्यंत घातक होंगे।
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